जौनपुर। जनपद के विभिन्न थाना क्षेत्रों से लगातार चोरी हो रहे दुधारू पशुओं की कत्लगाह बना शहर कोतवाली थाना जहां पुलिस संरक्षण में बेखौफ और बेरोकटोक सुरक्षा के घेरे में कहीं भोर में तो कहीं रात के अंधेरे में दर्जनों से अधिक बूचड़खाने क्रमशः सिपाह, बागे अरब, ख्वाजा दोस्त, बलोचटोला, अटाला ,सब्जी मंडी, बड़ी मस्जिद, पान दरीबा ,कटघरा, मीरमस्त सहित अन्य जगहों पर संचालित होते नजर आते है। कोरोना काल से लेकर वर्तमान काल में भी धमाल मचा कर बगैर शोर-शराबे के मालामाल हो रहे पुलिसकर्मिर्यों की मिलीभगत से ना सिर्फ दुधारू पशु निरंतर हलाल हो रहे हैं बल्कि कमजोर ,मजदूर ,मजदूर वर्ग के पशुपालकों तथा उनके परिजनों का निवाला छीनते नजर आते हैं। कभी मास्क ,बाइक और हेलमेट के नाम पर माननीय न्यायालय तथा मुख्यमंत्री के आदेशों की पालनहार बनती पुलिस भ्रष्टाचार और स्वयं के लालन-पालन हेतु किस हद तक ईमान बेचती है इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नजर आता है। प्रीत टाइम संवाददाता द्वारा जब इस प्रकरण पर नाम ना छापने की शर्त पर एक अवैध बूचड़खाना संचालक मोमिन से जानकारी चाही तो उन्होंने बताया योगी जी की सरकार के पहले हमें 15 से 20 हजार रुपया महीना चौकी तथा कोतवाली पुलिस को देना पड़ता था तब औसतन हमारी कमाई 2 लाख रुपया मासिक ही हो पाती थी। तथा पूर्व में एक विधायक को लाइसेंस के नाम पर संयुक्त रूप से दो करोड़ रूपया दिया गया था जिसे वह पूरा नहीं करा सका और पैसे को भी डकार गया। योगी सरकार के आते ही हमारे दहशत के दिन पुलिस के सहयोग से समाप्त हो गए और हमारी आमदनी 2 गुना से 3 गुना तक जा पहुंची। मोमिन के अनुसार हैरान कर देने वाली बातें सामने आई जहां उसने बताया कि अधिकांश चोर और पाकेट मारो तथा छोटे स्तर के चोर,उच्चको और लुटेरों को पुलिस ने गाय और भैंस तथा बकरी चोरी मे लगाकर तथा उसका फायदा और उपयोग की बात बताकर ना सिर्फ उन्हें एक रोजगार दिया बल्कि खुला संरक्षण देकर अपनी भी आय को दुरुस्त किया जिसके अंतर्गत प्रति गाय और भैंस 20 हजार रुपए में बूचड़खाने पर उपलब्ध कराई जाती है जबकि वही पशुपालकों से खरीदने खरीदने पर 5 से 7 हजार अतिरिक्त देय होता है। चोरी कर बेचे गए जानवरों की कीमत में चोर और पुलिस के बराबर की हिस्सेदारी होती है। तथा माल की शॉर्टेज के कारण कीमत में बेतहाशा वृद्धि के मद्देनजर एक गाय या भैंस 60 हजार की कीमत तक कटकर बिक जाती है जिसमें शुद्ध मुनाफा 35 से लेकर 40 हजार तक का आता है। इसके साथ साथ शहर में चल रहे अधिकांश होटलों में भी 30 प्रतिशत का मिक्सअप हमें अतिरिक्त कमाई का माध्यम बनता नजर आता है जिस कारण पुलिस को प्रतिमाह 50 हजार रुपया देने के बावजूद प्रति बूचड़खाना संचालक 4 से 5 लाख प्रति माह की कमाई करता नजर आता है। पुलिस चोरी होने से लेकर मांस की बिक्री तक हमें पूरा सहयोग प्राप्त करती जो हमें सरकारी कोरमों को पूरा करने से ज्यादा फायदेमंद नजर आता है।कुल मिलाकर रक्षक के नाम पर भक्षक बनी पुलिस रुपयों की खातिर ना सिर्फ ईमान बेच रही है बल्कि अपराधिक भ्रष्टाचार में लिप्त उच्च कर्मी भी भ्रष्टाचार की नदी में गोता लगाते नजर आते हैं जो चिंता के साथ-साथ जांच का भी विषय नजर आता है।

जब सईंया भये कोतवाल तो डर काहेका , ये गाना भी फीका पड़ गया ।
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