लखनऊ। मनुष्य परिस्थितियों का दास है रहना चाहता है खुश लेकिन होता उदास है। प्रकृति अपना संतुलन बनाने के लिए खुद अपना इंतजाम अपने अंदाज में करती है। आंधी ,तूफान भूकंप, बारिश, बाढ़,महामारी प्रकृति के अभिन्न अंग कहे जाते हैं।रक्षक के नाम पर भक्षक हो चुकी हमारी पुलिस और वन विभाग आज पूरी तरह से लकड़ी तस्करों के आगे बौने साबित हो रहे हैं।रुपयों की खातिर ईमान बेचने की आदी हो चुकी पुलिस के आला अधिकारी के रहमो करम पर काटे जा रहे प्रत्येक पेड़ के हिसाब से प्रकृति की तेरहवीं का भोज पुलिसकर्मी से लेकर थाना अध्यक्ष ,सीओ, पुलिस अधीक्षक तक को परोसा जाता है। इतना ही नहीं पुलिस और प्रशासन के सहयोग से दिन रात जनरेटर के सहयोग से डबल शिफ्ट में दहाड़ती आरा मशीनें हरे पेड़ों को टुकड़ों टुकड़ों में कर पेड़ों का अस्तित्व लकड़ियों में काटती है तथा ईमान बेचने वाले भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों को रुपया बाटती है। अपराध की दुनिया की बेताज बादशाह कहे जाने वाली उत्तर प्रदेश पुलिस के इशारे पर ही प्राकृतिक की सत्यानाश का खेल बेखौफ होकर खेला जाता है। बावजूद इसके माननीय न्यायालयों के द्वारा गाइडलाइंस का पालन उसी पुलिस से करवाया जा रहा है जिसके पास धरातल से समाप्त हो चुके अनगिनत हरे वृक्षों का कोई रिकॉर्ड ही उपलब्ध नहीं है। अर्थात प्रकृति का सत्यानाशी प्राकृतिक आपदा में भी अवसर तलाशता नजर आता है ।सत्ता पक्ष के गलियारे में बैठे माननीय और सम्माननीय कागजों पर हरे पेड़ों का रोपण करके अपनी पीठ थपथपाते और अपनी झोली भरते हैं तो वही धरातल पर हरे वृक्षों को नेस्तनाबूत करवा कर पुलिस वाले भी अकारण उठ रही अर्थी और ताबूत पर अपनी निकृष्ट जिम्मेदारी निभा रहे हैं। आत्मनिर्भर सरकार में विभिन्न पदों पर बैठे जिम्मेदार के साथ-साथ पीत पत्रकारिता कर रहे पत्रकार भी हमजोली बनकर पर्यावरण के साथ आंख मिचोली खेल रहे हैं जो स्वयं भी प्रकृति की मार झेल रहे हैं तथा वही निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे बेबाक पत्रकार प्रशासन और पुलिस के द्वारा फर्जी मुकदमों की मार झेल रहे हैं। निष्पक्ष पत्रकारों पर हिटलर शाही महामारी काल में काम न आयी प्रकृति ने धरा रौद्र रूप और हर तरफ से खबरें चीखती चिल्लाती नजर आयी। शहर से लेकर गांव तक वीरान तथा अस्पताल से लेकर शमशान तक घमासान और महासंग्राम नजर आया।कोरोना महामारी में बद इंतजामी और लाचारी के हालात इस कदर बद से बदतर हो चुके हैं कि लोग ऑक्सीजन सिलेंडर की किल्लत के चलते अपनों से जिंदगी के सफर में बीच रास्ते पर जुदा और अलविदा होते नजर आते हैं। कुल के बावजूद अपनी गलतियों और गुनाहों की सजा भुगत रहे लोग अपना बहुत कुछ गंवाने के बावजूद भी प्राकृति को संजोने और उसके संरक्षण की जगह उसकी कीमत लगाने से बाज नहीं आ रहे है। जिस कारण महामारी के इस दौर में भी पुलिस के रहमों करम पर हरे पेड़ों की बेतहाशा कटाई निर्विघ्नं जारी नजर आती हैं जो समूचे विनाश का निमंत्रण देती है।

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