आज पत्रकारिता जगत पर हुए जघन्य कुठाराघात के पश्चात बरबस ही यह गीत मानसपटल को झकझोरता नजर आता है कि -मझदार में नैया डूबे तो माझी पार लगावे ,माझी जो नाव डुबाए तो उसे कौन बचावे अर्थात रक्षक ही जब रक्षक बन जाए तो फिर उस जिंदगी को कौन बचाए ऐसी हृदय विदारक चीख पुकार आज अधिकांश घरों से सुनाई पड़ रही हैं।
जनमानस में व्याप्त कहावतों के अनुसार किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के एक सप्ताह पहले यमदूतों को सूचना प्राप्त होती है जबकि वहीं मान्यताओं के अनुसार हमारे उत्तर प्रदेश पुलिस को 2 माह पूर्व ही किसी भी व्यक्ति के मृत्यु की खबर लग जाती हैं।
परिजनों के द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार शाहगंज पुलिस ने मृतक पत्रकार आशुतोष श्रीवास्तव को दो माह पूर्व ही उनकी मौत की खबर बतलाई थी जिससे आहत होकर पत्रकार ने जान माल की सुरक्षा हेतु लिखित पत्राचार भी थाना शाहगंज पुलिस से किया था। पुलिस के द्वारा आगाह किए जाने के बावजूद गौ तस्करों और भूमाफियाओं के खिलाफ पत्रकारिता के माध्यम से लगातार बुलंद होने वाली आवाज को आखिरकार हमेशा हमेशा के लिए शांत कर दिया गया।
दिनदहाड़े बेखौफ अपराधियों के द्वारा ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात करके पत्रकार को मौत के घाट उतारते हुए आराम से रफू चक्कर हो जाना अपने आप में एक रहस्यमई लीला सी नजर आती है । जनहित में सर्वविदित मान्यताओं के अनुसार पेशेवर अपराधी पुलिस के कमासुत औलाद तथा भूमाफिया और तस्कर रिस्तेदार होते हैं जो अवैध व्यापार में ईमान बेचने वाले भ्रष्टाचारियों के मददगार बन जाते हैं।
अकूत धन की लालच में आकर माननीय न्यायालय और मुख्यमंत्री के आदेशों की धज्जियां उड़ाकर बेबस लाचार और महिलाओं को शांति भंग में पाबंद तथा शिक्षित बेरोजगार और होनहार को गांजा,गोकश तस्कर बताकर , गुंडा और गैंगस्टर का आरोपी बताकर अपनी पीठ थपथपाने वाली पुलिस से इमान और न्याय की चाहत रखने वाले लोग हजारों किलोमीटर की दूरी रखने नजर आते हैं।
पुलिस सहयोग और सौजन्य से संचालित हो रहे अवैध मयखाने , बूचड़खाने तथा भूमाफियाओं की सरपरस्ती का आतंक शहर से लेकर गांव की हर बस्ती में बेख़ौफ़ होकर अनगिनत ज़िन्दगियो को दरिंदगी का शिकार बना रहा है जों चिंता के साथ-साथ जांच का भी विषय नजर आता है।

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