पुलिस रूपयों की खातिर ना सिर्फ ईमान बेचकर कानून को बदनाम करती है बल्कि एक तीर से कई निशाना साधती है। पहले मुंह मांगी कीमत लेकर अवैध कब्जा धारकों को अपराध की हर सीमा लाघने का शुभ अवसर प्राप्त करती है जिसके दरमियांन अधिकांश मामलों में कुछ लहुलुहान तो कुछ अपनी जान गवाने में कामयाब होते हैं। तत्पश्चात शुरू होता है रुपया लेकर फर्जी और मनमर्जी तौर पर मनचाही धाराओं का समावेश जिसके अंतर्गत रूपयो के अनुसार न सिर्फ आपराधिक धाराएं लगाई जाती हैं बल्कि रुपया ना देने पर पीड़ित को डॉक्टरी मोआइना तो दूर थाने से दुत्कार कर भगाया जाता है।
अपराध पोसी के पश्चात पुलिस गर्मजोशी से कफनपोशी करती है फिर विवेचना के नाम पर मनचाही लूट का शुभ अवसर आता है। जिस कारण जनमानस में चर्चाओं के अनुसार विवेचना आज पुलिस का अवैध व्यापार बनकर रह गया जो चिंता के साथ-साथ जांच कभी विषय नजर आता है।

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